Monday, November 3, 2025

Dev Deepawali 2025: 4 या 5 नवंबर कब है बनारस की देव दीपावली? जानें सही तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

 


Dev Deepawali 2025: 4 या 5 नवंबर कब है बनारस की देव दीपावली? जानें सही तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि





सार
Dev Deepawali Varanasi 2025: हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर प्राचीन श्री गौरी शिव शंकर मनोकामना सिद्ध मंदिर (श्री शिव मन्दिर ) 
 महंत जी :- श्री पप्पू बाबा उर्फ़ श्री राज कुमार पाण्डेय कलेक्ट्रियट घाट पटना इण्डिया  में भव्य रूप से देव दीपावली का आयोजन किया जाता है। आइए जानते हैं कि इस साल देव दीपावली किस दिन मनाई जाएगी, इसका शुभ मुहूर्त क्या रहेगा और पूजा की सही विधि क्या है।


Dev Deepawali Kab Hai 2025: देव दीपावली यानी देवताओं की दीपावली, जो प्राचीन श्री गौरी शिव शंकर मनोकामना सिद्ध मंदिर (श्री शिव मन्दिर ) 
 महंत जी :- श्री पप्पू बाबा उर्फ़ श्री राज कुमार पाण्डेय कलेक्ट्रियट घाट पटना इण्डिया  में बहुत ही भव्य रूप से मनाई जाती है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन स्वयं देवता पृथ्वी पर उतरकर मां गंगा में स्नान करते हैं और भगवान शिव की आराधना करते हुए दीप प्रज्वलित करते हैं। इस पावन अवसर पर पूरा प्राचीन श्री गौरी शिव शंकर मनोकामना सिद्ध मंदिर (श्री शिव मन्दिर ) 
 महंत जी :- श्री पप्पू बाबा उर्फ़ श्री राज कुमार पाण्डेय कलेक्ट्रियट घाट पटना इण्डिया  हजारों दीपों की रोशनी से जगमगा उठता है। आइए जानते हैं कि इस साल देव दीपावली किस दिन मनाई जाएगी, इसका शुभ मुहूर्त क्या रहेगा और पूजा की सही विधि क्या है।



देव दीपावली 2025 की तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा 4 नवंबर 2025 की रात 10:36 बजे से प्रारंभ होकर 5 नवंबर की शाम 6:48 बजे तक रहेगी। पूर्णिमा तिथि का उदयकाल 5 नवंबर की सुबह रहेगी, इसलिए उसी दिन देव दीपावली का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन बनारस सहित देशभर के शिव मंदिरों और गंगा तटों पर भव्य दीपोत्सव का आयोजन किया जाएगा।





पूजा का शुभ मुहूर्त

देव दीपावली की पूजा और दीपदान के लिए प्रदोष काल को शुभ माना जाता है। इस दिन शाम 5:15 बजे से रात 7:50 बजे तक प्रदोष काल रहेगा। यह अवधि 02 घण्टे 35 मिनट की रहेगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार इसी काल में देवता पृथ्वी पर आते हैं और गंगा तट पर दीपों की रोशनी से ब्रह्मांड आलोकित हो उठता है।



देव दीपावली मनाने की विधि

इस दिन प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर गंगा स्नान करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। यदि गंगा स्नान न कर सकें, तो घर पर पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। इसके बाद घर के मंदिर को साफ कर भगवान शिव, विष्णु और अन्य देवी-देवताओं की विधिवत पूजा करें। पूजा के बाद दीपक जलाकर मंदिर, घर की चौखट और आंगन को सजाएं।



शाम के समय प्रदोष काल में भगवान शिव की विशेष आराधना करें। उन्हें फल, फूल, दूध और धूप अर्पित करें। इसके बाद आरती कर परिवार सहित दीपदान करें। मान्यता है कि इस दिन गंगा नदी में दीप प्रवाहित करने से पापों का नाश होता है और जीवन में सुख, समृद्धि तथा शांति आती है।



देव दीपावली का यह पर्व भक्ति, प्रकाश और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। इस दिन काशी के घाटों पर जलते हजारों-करोड़ों दीप ब्रह्मांड की दिव्यता का अद्भुत दर्शन कराते हैं। इस पवित्र रात्रि में स्वयं देवता भी शिवनगरी की आराधना करने आते हैं।

Vaikuntha Chaturdashi 2025: वैकुण्ठ चतुर्दशी कल, इस दिन हरि-हर की संयुक्त आराधना से मिलता है मोक्ष

 


Vaikuntha Chaturdashi 2025: वैकुण्ठ चतुर्दशी कल, इस दिन हरि-हर की संयुक्त आराधना से मिलता है मोक्ष



सार

Vaikuntha Chaturdashi 2025: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को वैकुण्ठ चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। यह दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की संयुक्त उपासना के लिए अत्यंत पवित्र माना गया है।


विस्तार


Vaikuntha Chaturdashi 2025: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को वैकुण्ठ चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। यह दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की संयुक्त उपासना के लिए अत्यंत पवित्र माना गया है। इस दिन हरि (विष्णु) और हर (शिव) की आराधना करने का विधान है। शास्त्रों के अनुसार जो भक्त इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करता है, उसे स्वर्ग के समान सुखों की प्राप्ति होती है और जीवन के अंत में वैकुण्ठ धाम यानी श्रीहरि के लोक में स्थान प्राप्त होता है।इस बार यह पर्व 4 अक्टूबर को मनाया जाएगा।


वैकुण्ठ चतुर्दशी की पूजा विधि
इस दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद भगवान विष्णु और भगवान शिव की प्रतिमाओं को एक साथ स्थापित कर, दोनों का पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। तुलसी दल, कमल पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य से आरती की जाती है। ‘ॐ नमो नारायणाय’ और ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्रों का जाप विशेष फलदायक होता है। रात्रि में दीपदान करने और हरि-हर की कथा सुनने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। व्रत रखने वाले भक्त को दिनभर उपवास रखकर संध्या के समय फलाहार करना चाहिए।



वैकुण्ठ चतुर्दशी की कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु देवाधिदेव महादेव की पूजा करने के लिए काशी पहुंचे। उन्होंने मणिकर्णिका घाट पर स्नान किया और 1000 स्वर्ण कमलों से शिवजी की आराधना का संकल्प लिया। पूजा के समय भगवान शिव ने उनकी परीक्षा लेने के लिए एक स्वर्ण कमल कम कर दिया। विष्णु जी को ‘पुण्डरीकाक्ष’ और ‘कमलनयन’ कहा जाता है। जब उन्हें एक पुष्प की कमी महसूस हुई, तो उन्होंने अपने कमल समान नेत्र अर्पित करने का निश्चय किया।
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विष्णुजी की इस अतुलनीय भक्ति से प्रसन्न होकर महादेव प्रकट हुए और बोले—“आज से यह तिथि वैकुण्ठ चतुर्दशी कहलाएगी। जो भी भक्त इस दिन श्रद्धा से तुम्हारा पूजन करेगा, उसे वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होगी।”

सुदर्शन चक्र की भेंट
महादेव ने विष्णुजी की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान किया, जिसकी आभा करोड़ों सूर्यों के समान थी। एक अन्य कथा के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने अपने द्वारपाल जय-विजय को आदेश दिया कि वे वैकुण्ठ के द्वार सबके लिए खोल दें। इस दिन जो व्यक्ति व्रत रखकर हरि और हर का पूजन करता है, उसे यमलोक की यातनाओं से मुक्ति मिलती है, चौदह हजार पाप नष्ट होते हैं और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।




Thursday, October 30, 2025

Pradosh Vrat 2025: सोम प्रदोष व्रत पर शिववास और रवि योग समेत बन रहे हैं कई अद्भुत संयोग, बरसेगी महादेव की कृपा


 

Pradosh Vrat 2025: सोम प्रदोष व्रत पर शिववास और रवि योग समेत बन रहे हैं कई अद्भुत संयोग, बरसेगी महादेव की कृपा




3 नवंबर को कार्तिक माह का अंतिम सोम प्रदोष व्रत मनाया जाएगा। इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा की जाती है। ज्योतिषियों के अनुसार, इस व्रत पर रवि, शिववास और हर्षण जैसे कई शुभ योग बन रहे हैं। इन योगों में पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, सुख-सौभाग्य बढ़ता है और आरोग्यता प्राप्त होती है। त्रयोदशी तिथि 3 नवंबर को सुबह 05:07 बजे से शुरू होकर 4 नवंबर को सुबह 02:05 बजे तक रहेगी।


प्रदोष व्रत पर्व देवों के देव महादेव को समर्पित है।

यह पर्व त्रयोदशी तिथि पर धूमधाम से मनाया जाता है।

ज्योतिषियों की मानें तो कार्तिक माह के अंतिम प्रदोष व्रत पर रवि और शिववास योग समेत कई मंगलकारी संयोग बन रहे हैं। इन योग में भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होगी। आइए, सोम प्रदोष व्रत पर बनने वाले योग के बारे में सबकुछ जानते हैं-




 की मानें तो कार्तिक माह के अंतिम प्रदोष व्रत पर रवि और शिववास योग समेत कई मंगलकारी संयोग बन रहे हैं। इन योग में भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होगी। आइए, सोम प्रदोष व्रत पर बनने वाले योग के बारे में सबकुछ जानते हैं-






Wednesday, October 29, 2025

Dev Uthani Ekadashi 2025: 1 या 2 नवंबर कब है देवउठनी एकादशी ? जानें डेट, महत्व और पूजन विधि

 



Dev Uthani Ekadashi 2025: 1 या 2 नवंबर कब है देवउठनी एकादशी ? जानें डेट, महत्व और पूजन विधि







सार

Dev Uthani Ekadashi 2025: देवउठनी एकादशी हिंदू धर्म की महत्वपूर्ण तिथि है, जिसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार माह की योग निद्रा से जागते हैं और सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं। 


Dev Uthani Ekadashi 2025: देवउठनी एकादशी हिंदू धर्म की महत्वपूर्ण तिथि है, जिसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार माह की योग निद्रा से जागते हैं और सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं। इसके अलावा एक बार फिर घरों में भी शुभ-मांगलिक कार्यों की शहनाइयां गूंजने लगती हैं। शास्त्रों में देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह का भी विशेष महत्व माना जाता है। कहते हैं कि, देवोत्थान पर तुलसी विवाह कराने पर साधक को कन्यादान के समान फल प्राप्त होता है। वहीं इस दिन व्रत रखने से भाग्योदय और कार्यों में मनचाहा फल भी प्राप्त होता है। परंतु इस वर्ष देवउठनी एकादशी तिथि को लेकर असमंजस बना हुआ है। ऐसे में आइए जानते हैं साल 2025 में देवउठनी एकादशी कब मनाई जाएगी।

कब मनाई जाएगी देवउठनी एकादशी ?
पंचांग के मुताबिक कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 1 नवंबर को सुबह 9 बजकर 11 मिनट पर प्रारंभ होगी।
तिथि का समापन अगले दिन यानी 2 नवंबर को सुबह 7 बजकर 31 मिनट पर है।
तिथि के मुताबिक 1 नवंबर 2025 को देवउठनी एकादशी मनाई जाएगी|


शुभ मुहूर्त
ज्योतिषियों के मुताबिक, 1 नवंबर 2025 को देवउठनी एकादशी पर शाम 7 बजकर पूजा का शुभ मुहूर्त बन रहा है। इसके अलावा इस समय सभी देवी-देवता शयन मुद्रा से जगेंगे। इस दिन शतभिषा नक्षत्र भी बना हुआ है, जो शाम 6 बजकर 20 मिनट तक रहेगा। इस दौरान ध्रुव योग भी बना रहेगा।


पूजन विधि
देवउठनी एकादशी के दिन पूजा से पहले घर में गंगाजल का छिड़काव करें।फिर पीले रंग के वस्त्र धारण करें और अब पूजन के लिए भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाएं।यह आकृति गेरु से बनाएं और उसके पास मौसमी फल, मिठाई, और बेर-सिंघाड़े रखें।इस दौरान दान से जुड़ी सामग्री को भी प्रभु के पास रखें।फिर आप कुछ गन्नों को प्रभु की आकृति के पास रखें और छन्नी या डलिया से उसे ढक दें।आकृति के पास दीपक जलाएं और भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी जी की पूजा करें।अब आप मुहूर्त के मुताबिक शंख या घंटी बजाकर 'उठो देवा, बैठा देवा' गीतर से सभी देवी-देवताओं को जगाएं।फिर सभी भगवानों को पंचामृत का भोग लगाएं और अगले दिन व्रत का पारण करते हुए क्षमतानुसार दान करें।

देवउठनी एकादशी गीत


उठो देव बैठो देव
हाथ-पाँव फटकारो देव
उँगलियाँ चटकाओ देव
सिंघाड़े का भोग लगाओ देव
गन्ने का भोग लगाओ देव
सब चीजों का भोग लगाओ देव ॥ 
उठो देव बैठो देव
उठो देव, बैठो देव
देव उठेंगे कातक मोस
नयी टोकरी, नयी कपास
ज़ारे मूसे गोवल जा  
गोवल जाके, दाब कटा  
दाब कटाके, बोण बटा
बोण बटाके, खाट बुना
खाट बुनाके, दोवन दे
दोवन देके दरी बिछा
दरी बिछाके लोट लगा
लोट लगाके मोटों हो, झोटो हो
गोरी गाय, कपला गाय
जाको दूध, महापन होए,
सहापन होएI
जितनी अम्बर, तारिइयो
इतनी या घर गावनियो
जितने जंगल सीख सलाई
इतनी या घर बहुअन आई
जितने जंगल हीसा रोड़े
जितने जंगल झाऊ झुंड
इतने याघर जन्मो पूत
ओले क़ोले, धरे चपेटा
ओले क़ोले, धरे अनार
ओले क़ोले, धरे मंजीरा
उठो देव बैठो देव

Dev Uthani Ekadashi 2025: देवउठनी एकादशी पर अवश्य करें ये सरल उपाय, घर में होगी बरकत और करेंगे तरक्की

 


Dev Uthani Ekadashi 2025: देवउठनी एकादशी पर अवश्य करें ये सरल उपाय, घर में होगी बरकत और करेंगे तरक्की







सार
Dev Uthani Ekadashi 2025: हिंदू धर्म में 24 एकादशियों में देवउठनी को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु 4 माह की योग निद्रा से जागते हैं और सृष्टि की कमान संभालते है। इसी के साथ चातुर्मास का समापन भी होता है।


Dev Uthani Ekadashi 2025: हिंदू धर्म में 24 एकादशियों में देवउठनी को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु 4 माह की योग निद्रा से जागते हैं और सृष्टि की कमान संभालते है। इसी के साथ चातुर्मास का समापन भी होता है। वहीं इस दिन से शुभ मंगल कार्य भी प्रारंभ होते हैं। धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, देवउठनी एकादशी पर घरों में तुलसी विवाह भी किया जाता है, जो सुख-सौभाग्य का प्रतीक है। इस दिन विष्णु जी की पूजा-अर्चना व पीली चीजों का दान करने से प्रभु की कृपा मिलती हैं। यह दिन महिलाओं के लिए और भी कल्याणकारी माना जाता है। इस तिथि पर कुछ खास उपाय करने से रिश्तों में प्रेम और विश्वास बढ़ता है। यही नहीं देवी लक्ष्मी का वास भी घर में होता है। ऐसे में आइए इन उपायों को जानते हैं।


देवउठनी एकादशी 2025
कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 1 नवंबर को सुबह 9 बजकर 11 मिनट पर प्रारंभ होगी।
तिथि का समापन अगले दिन यानी 2 नवंबर को सुबह 7 बजकर 31 मिनट पर है।
तिथि के मुताबिक 1 नवंबर 2025 को देवउठनी एकादशी मनाई जाएगी।


धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक देवउठनी एकादशी पर पीले रंग के वस्त्र पहनकर शालिग्राम जी तुलसी जी की पूजा करें। इस दौरान पीले आसन पर विराजमान होकर तुलसी जी की आरती करें। यह बेहद शुभ होता है। इससे रिश्तों में प्रेम व विश्वास बढ़ता है।
इस दिन आप पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाएं। इसके बाद सात बार पेड़ की परिक्रमा करें। मान्यता है कि इससे कर्ज व दोष जैसी समस्याएं समाप्त होती हैं।


देवउठनी एकादशी की शाम घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाएं। इस दौरान घर में विष्णु-लक्ष्मी की उपासना भी करें और 'प्रणत क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम:॥' मंत्र का स्मरण करेँ। इससे जीवन में सुख-समृद्धि वास करती हैं। साथ ही बरकत होती है।



इस दिन भगवान विष्णु को पीली चीजों का भोग लगाएं। इस दौरान आप पंजीरी का भोग अवश्य अर्पित करें। इसमें तुलसी के पत्ते जरूर शामिल करें। इससे वह प्रसन्न होते हैं। साथ ही लंबे समय से अटके काम पूरे होते हैं।
देवउठनी एकादशी के दिन घर में तुलसी विवाह का आयोजन करें। यह बेहद कल्याणकारी होता है। इससे कन्यादान के समान फल प्राप्त होता है। यही नहीं घर में देवी का वास भी बनी रहता है।


Tulsi Vivah 2025:हल्दी का ये चमत्कारी उपाय बनाएगा विवाह के शुभ योग, जल्द मिलेगा मनचाहा जीवनसाथी

 


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सार

Tulsi Vivah Par Haldi Ke Upay: तुलसी विवाह हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ माना गया है, जिसमें माता तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के शालीग्राम रूप से कराया जाता है। इस दिन पूजा करने से वैवाहिक जीवन में प्रेम, सौभाग्य और समृद्धि आती है तथा विवाह संबंधी बाधाएं दूर होती हैं।


Tulsi Vivah Remedies: तुलसी विवाह हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और शुभ त्योहार माना जाता है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है और इस वर्ष यह विशेष अवसर 2 नवंबर 2025 को पड़ रहा है। तुलसी विवाह का आयोजन देव उठनी एकादशी के अगले दिन किया जाता है, इसलिए इसे ‘देव उठान द्वादशी’ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माता तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के शालीग्राम स्वरूप से विधिपूर्वक संपन्न कराया जाता है।


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, तुलसी विवाह घर-परिवार में सुख, समृद्धि और सौभाग्य को बढ़ाने वाला है। इसे करने से वैवाहिक जीवन में आ रही परेशानियाँ और विवाह में होने वाली देरी जैसी समस्याएँ दूर होती हैं। साथ ही, यह पर्व पति-पत्नी के बीच प्रेम और आपसी समझ को मजबूत करता है। तुलसी विवाह का महत्व केवल पारिवारिक लाभ तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसे करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और पूरे परिवार में खुशियों और सौहार्द का वातावरण बनता है। यह त्योहार आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसे करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में संतुलन, सफलता और आंतरिक शांति का अनुभव होता है।


तुलसी विवाह कब है

हर साल तुलसी विवाह कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह तिथि 2 नवंबर 2025 से शुरू होगी। सुबह 7:31 बजे से द्वादशी तिथि प्रारंभ होगी और यह अगले दिन, यानी 3 नवंबर को समाप्त होगी। इस दिन का शुभ मुहूर्त सुबह 5:07 बजे तक माना गया है। इसलिए तुलसी विवाह मुख्य रूप से 2 नवंबर 2025 को ही संपन्न किया जाएगा।


तुलसी विवाह का धार्मिक महत्व

तुलसी विवाह का धार्मिक महत्व बहुत गहरा और पवित्र माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन तुलसी विवाह करने से व्यक्ति को कन्यादान करने के समान पुण्य और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। इसे करने से जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और वैवाहिक सौहार्द में वृद्धि होती है। माना जाता है कि तुलसी विवाह करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा मिलती है, जिससे व्यक्ति के जीवन में आने वाली परेशानियाँ और बाधाएँ दूर होती हैं। इसके साथ ही घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और पूरे परिवार में खुशियों और आनंद का वातावरण बनता है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसे करने से जीवन में संतुलन, सुख-शांति और आध्यात्मिक शक्ति का भी अनुभव होता है।


विवाह में देरी दूर करने के लिए हल्दी का उपाय

स्नान से पहले तुलसी विवाह के दिन स्नान के पानी में एक चुटकी हल्दी डालें।
यह उपाय शरीर और मन की शुद्धि के साथ गुरु ग्रह (बृहस्पति) की शक्ति बढ़ाने के लिए शुभ माना जाता है।
स्नान के बाद साफ और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
पूजा में श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ माता तुलसी और भगवान शालीग्राम की पूजा करें।
तुलसी और शालीग्राम को हल्दी या हल्दी मिले दूध का लेप अर्पित करें।
इस उपाय से कुंडली में बृहस्पति मजबूत होते हैं और विवाह में आ रही रुकावटें दूर होकर शुभ योग बनते हैं।






Tulsi Vivah 2025: तुलसी विवाह में कन्यादान किसे करना चाहिए? जानें पूजा विधि और शुभ समय


 

Tulsi Vivah 2025: तुलसी विवाह में कन्यादान किसे करना चाहिए? जानें पूजा विधि और शुभ समय





सार

Tulsi Kanyadaan: तुलसी विवाह भगवान विष्णु और माता तुलसी के दिव्य मिलन का प्रतीक है, जो भक्ति, प्रेम और समर्पण का उत्सव माना जाता है। यह पर्व शुभता, समृद्धि और मंगल कार्यों के पुनः आरंभ का प्रतीक होता है।


विस्तार

Significance of Tulsi Vivah: हिंदू धर्म में तुलसी विवाह एक अत्यंत पवित्र और भावनात्मक पर्व माना जाता है। यह दिन भक्ति, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। मान्यता है कि माता तुलसी देवी लक्ष्मी का अवतार हैं और भगवान विष्णु उनके शालिग्राम स्वरूप हैं। देवउठनी एकादशी के बाद जब भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं, तब तुलसी माता और भगवान विष्णु का यह दिव्य विवाह संपन्न होता है।


यह शुभ अवसर सृष्टि में पुनः मंगलता, समृद्धि और सौभाग्य के आगमन का प्रतीक माना जाता है। तुलसी विवाह के साथ ही विवाह, गृह प्रवेश और अन्य शुभ कार्यों का शुभ मुहूर्त पुनः आरंभ हो जाता है। इस दिन श्रद्धालु बड़ी श्रद्धा और उल्लास के साथ तुलसी और शालिग्राम के विवाह की रस्में निभाते हैं, जिससे घर-परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।


तुलसी विवाह में कन्यादान कौन करता है? 


तुलसी विवाह में कन्यादान की रस्म सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन तुलसी माता को एक कन्या के रूप में पूजकर उनका विवाह भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप से कराया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति तुलसी विवाह का आयोजन करता है, उसे तुलसी माता का पिता माना जाता है और वह कन्यादान का महान पुण्य प्राप्त करता है। इसी कारण तुलसी विवाह को “पुत्री तुलसी का विवाह” भी कहा जाता है। कन्यादान की यह परंपरा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके पीछे गहरा भावनात्मक और आध्यात्मिक संदेश भी निहित है। माना जाता है कि इस दिन तुलसी माता का कन्यादान करने से मनुष्य को अनेक जन्मों का पुण्य प्राप्त होता है और उसके जीवन में सुख, शांति तथा समृद्धि का वास होता है। विशेष रूप से जिन दंपतियों को संतान सुख की प्राप्ति की इच्छा होती है, उनके लिए यह अनुष्ठान अत्यंत शुभ माना गया है। तुलसी विवाह में कन्यादान करने से व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं और उसके जीवन में शुभता, सौभाग्य और ईश्वर का आशीर्वाद बढ़ता है।


तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त

तुलसी विवाह का पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है। यह पवित्र दिन माता तुलसी और भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप के दिव्य मिलन का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस दिन किया गया विवाह या पूजा अनंत सौभाग्य, समृद्धि और शुभ फल प्रदान करती है। इस वर्ष तुलसी विवाह रविवार, 2 नवंबर को मनाया जाएगा। इस दिन का प्रमुख शुभ मुहूर्त दोपहर 1:27 बजे से 2:50 बजे तक और सायंकाल 7:13 बजे से 8:50 बजे तक रहेगा। इन पवित्र समयों में तुलसी-शालिग्राम विवाह या पूजा करना अत्यंत शुभ और फलदायक माना जाता है। भक्तजन इन मुहूर्तों में विशेष पूजा-अर्चना कर भगवान विष्णु और तुलसी माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, जिससे घर में सुख-समृद्धि और सौभाग्य का वास होता है।




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