Monday, November 3, 2025

Dev Deepawali 2025: 4 या 5 नवंबर कब है बनारस की देव दीपावली? जानें सही तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

 


Dev Deepawali 2025: 4 या 5 नवंबर कब है बनारस की देव दीपावली? जानें सही तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि





सार
Dev Deepawali Varanasi 2025: हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर प्राचीन श्री गौरी शिव शंकर मनोकामना सिद्ध मंदिर (श्री शिव मन्दिर ) 
 महंत जी :- श्री पप्पू बाबा उर्फ़ श्री राज कुमार पाण्डेय कलेक्ट्रियट घाट पटना इण्डिया  में भव्य रूप से देव दीपावली का आयोजन किया जाता है। आइए जानते हैं कि इस साल देव दीपावली किस दिन मनाई जाएगी, इसका शुभ मुहूर्त क्या रहेगा और पूजा की सही विधि क्या है।


Dev Deepawali Kab Hai 2025: देव दीपावली यानी देवताओं की दीपावली, जो प्राचीन श्री गौरी शिव शंकर मनोकामना सिद्ध मंदिर (श्री शिव मन्दिर ) 
 महंत जी :- श्री पप्पू बाबा उर्फ़ श्री राज कुमार पाण्डेय कलेक्ट्रियट घाट पटना इण्डिया  में बहुत ही भव्य रूप से मनाई जाती है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन स्वयं देवता पृथ्वी पर उतरकर मां गंगा में स्नान करते हैं और भगवान शिव की आराधना करते हुए दीप प्रज्वलित करते हैं। इस पावन अवसर पर पूरा प्राचीन श्री गौरी शिव शंकर मनोकामना सिद्ध मंदिर (श्री शिव मन्दिर ) 
 महंत जी :- श्री पप्पू बाबा उर्फ़ श्री राज कुमार पाण्डेय कलेक्ट्रियट घाट पटना इण्डिया  हजारों दीपों की रोशनी से जगमगा उठता है। आइए जानते हैं कि इस साल देव दीपावली किस दिन मनाई जाएगी, इसका शुभ मुहूर्त क्या रहेगा और पूजा की सही विधि क्या है।



देव दीपावली 2025 की तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा 4 नवंबर 2025 की रात 10:36 बजे से प्रारंभ होकर 5 नवंबर की शाम 6:48 बजे तक रहेगी। पूर्णिमा तिथि का उदयकाल 5 नवंबर की सुबह रहेगी, इसलिए उसी दिन देव दीपावली का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन बनारस सहित देशभर के शिव मंदिरों और गंगा तटों पर भव्य दीपोत्सव का आयोजन किया जाएगा।





पूजा का शुभ मुहूर्त

देव दीपावली की पूजा और दीपदान के लिए प्रदोष काल को शुभ माना जाता है। इस दिन शाम 5:15 बजे से रात 7:50 बजे तक प्रदोष काल रहेगा। यह अवधि 02 घण्टे 35 मिनट की रहेगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार इसी काल में देवता पृथ्वी पर आते हैं और गंगा तट पर दीपों की रोशनी से ब्रह्मांड आलोकित हो उठता है।



देव दीपावली मनाने की विधि

इस दिन प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर गंगा स्नान करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। यदि गंगा स्नान न कर सकें, तो घर पर पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। इसके बाद घर के मंदिर को साफ कर भगवान शिव, विष्णु और अन्य देवी-देवताओं की विधिवत पूजा करें। पूजा के बाद दीपक जलाकर मंदिर, घर की चौखट और आंगन को सजाएं।



शाम के समय प्रदोष काल में भगवान शिव की विशेष आराधना करें। उन्हें फल, फूल, दूध और धूप अर्पित करें। इसके बाद आरती कर परिवार सहित दीपदान करें। मान्यता है कि इस दिन गंगा नदी में दीप प्रवाहित करने से पापों का नाश होता है और जीवन में सुख, समृद्धि तथा शांति आती है।



देव दीपावली का यह पर्व भक्ति, प्रकाश और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। इस दिन काशी के घाटों पर जलते हजारों-करोड़ों दीप ब्रह्मांड की दिव्यता का अद्भुत दर्शन कराते हैं। इस पवित्र रात्रि में स्वयं देवता भी शिवनगरी की आराधना करने आते हैं।

Vaikuntha Chaturdashi 2025: वैकुण्ठ चतुर्दशी कल, इस दिन हरि-हर की संयुक्त आराधना से मिलता है मोक्ष

 


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सार

Vaikuntha Chaturdashi 2025: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को वैकुण्ठ चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। यह दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की संयुक्त उपासना के लिए अत्यंत पवित्र माना गया है।


विस्तार


Vaikuntha Chaturdashi 2025: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को वैकुण्ठ चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। यह दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की संयुक्त उपासना के लिए अत्यंत पवित्र माना गया है। इस दिन हरि (विष्णु) और हर (शिव) की आराधना करने का विधान है। शास्त्रों के अनुसार जो भक्त इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करता है, उसे स्वर्ग के समान सुखों की प्राप्ति होती है और जीवन के अंत में वैकुण्ठ धाम यानी श्रीहरि के लोक में स्थान प्राप्त होता है।इस बार यह पर्व 4 अक्टूबर को मनाया जाएगा।


वैकुण्ठ चतुर्दशी की पूजा विधि
इस दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद भगवान विष्णु और भगवान शिव की प्रतिमाओं को एक साथ स्थापित कर, दोनों का पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। तुलसी दल, कमल पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य से आरती की जाती है। ‘ॐ नमो नारायणाय’ और ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्रों का जाप विशेष फलदायक होता है। रात्रि में दीपदान करने और हरि-हर की कथा सुनने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। व्रत रखने वाले भक्त को दिनभर उपवास रखकर संध्या के समय फलाहार करना चाहिए।



वैकुण्ठ चतुर्दशी की कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु देवाधिदेव महादेव की पूजा करने के लिए काशी पहुंचे। उन्होंने मणिकर्णिका घाट पर स्नान किया और 1000 स्वर्ण कमलों से शिवजी की आराधना का संकल्प लिया। पूजा के समय भगवान शिव ने उनकी परीक्षा लेने के लिए एक स्वर्ण कमल कम कर दिया। विष्णु जी को ‘पुण्डरीकाक्ष’ और ‘कमलनयन’ कहा जाता है। जब उन्हें एक पुष्प की कमी महसूस हुई, तो उन्होंने अपने कमल समान नेत्र अर्पित करने का निश्चय किया।
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विष्णुजी की इस अतुलनीय भक्ति से प्रसन्न होकर महादेव प्रकट हुए और बोले—“आज से यह तिथि वैकुण्ठ चतुर्दशी कहलाएगी। जो भी भक्त इस दिन श्रद्धा से तुम्हारा पूजन करेगा, उसे वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होगी।”

सुदर्शन चक्र की भेंट
महादेव ने विष्णुजी की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान किया, जिसकी आभा करोड़ों सूर्यों के समान थी। एक अन्य कथा के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने अपने द्वारपाल जय-विजय को आदेश दिया कि वे वैकुण्ठ के द्वार सबके लिए खोल दें। इस दिन जो व्यक्ति व्रत रखकर हरि और हर का पूजन करता है, उसे यमलोक की यातनाओं से मुक्ति मिलती है, चौदह हजार पाप नष्ट होते हैं और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।




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