Thursday, October 30, 2025

Pradosh Vrat 2025: सोम प्रदोष व्रत पर शिववास और रवि योग समेत बन रहे हैं कई अद्भुत संयोग, बरसेगी महादेव की कृपा


 

Pradosh Vrat 2025: सोम प्रदोष व्रत पर शिववास और रवि योग समेत बन रहे हैं कई अद्भुत संयोग, बरसेगी महादेव की कृपा




3 नवंबर को कार्तिक माह का अंतिम सोम प्रदोष व्रत मनाया जाएगा। इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा की जाती है। ज्योतिषियों के अनुसार, इस व्रत पर रवि, शिववास और हर्षण जैसे कई शुभ योग बन रहे हैं। इन योगों में पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, सुख-सौभाग्य बढ़ता है और आरोग्यता प्राप्त होती है। त्रयोदशी तिथि 3 नवंबर को सुबह 05:07 बजे से शुरू होकर 4 नवंबर को सुबह 02:05 बजे तक रहेगी।


प्रदोष व्रत पर्व देवों के देव महादेव को समर्पित है।

यह पर्व त्रयोदशी तिथि पर धूमधाम से मनाया जाता है।

ज्योतिषियों की मानें तो कार्तिक माह के अंतिम प्रदोष व्रत पर रवि और शिववास योग समेत कई मंगलकारी संयोग बन रहे हैं। इन योग में भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होगी। आइए, सोम प्रदोष व्रत पर बनने वाले योग के बारे में सबकुछ जानते हैं-




 की मानें तो कार्तिक माह के अंतिम प्रदोष व्रत पर रवि और शिववास योग समेत कई मंगलकारी संयोग बन रहे हैं। इन योग में भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होगी। आइए, सोम प्रदोष व्रत पर बनने वाले योग के बारे में सबकुछ जानते हैं-






Wednesday, October 29, 2025

Dev Uthani Ekadashi 2025: 1 या 2 नवंबर कब है देवउठनी एकादशी ? जानें डेट, महत्व और पूजन विधि

 



Dev Uthani Ekadashi 2025: 1 या 2 नवंबर कब है देवउठनी एकादशी ? जानें डेट, महत्व और पूजन विधि







सार

Dev Uthani Ekadashi 2025: देवउठनी एकादशी हिंदू धर्म की महत्वपूर्ण तिथि है, जिसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार माह की योग निद्रा से जागते हैं और सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं। 


Dev Uthani Ekadashi 2025: देवउठनी एकादशी हिंदू धर्म की महत्वपूर्ण तिथि है, जिसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार माह की योग निद्रा से जागते हैं और सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं। इसके अलावा एक बार फिर घरों में भी शुभ-मांगलिक कार्यों की शहनाइयां गूंजने लगती हैं। शास्त्रों में देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह का भी विशेष महत्व माना जाता है। कहते हैं कि, देवोत्थान पर तुलसी विवाह कराने पर साधक को कन्यादान के समान फल प्राप्त होता है। वहीं इस दिन व्रत रखने से भाग्योदय और कार्यों में मनचाहा फल भी प्राप्त होता है। परंतु इस वर्ष देवउठनी एकादशी तिथि को लेकर असमंजस बना हुआ है। ऐसे में आइए जानते हैं साल 2025 में देवउठनी एकादशी कब मनाई जाएगी।

कब मनाई जाएगी देवउठनी एकादशी ?
पंचांग के मुताबिक कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 1 नवंबर को सुबह 9 बजकर 11 मिनट पर प्रारंभ होगी।
तिथि का समापन अगले दिन यानी 2 नवंबर को सुबह 7 बजकर 31 मिनट पर है।
तिथि के मुताबिक 1 नवंबर 2025 को देवउठनी एकादशी मनाई जाएगी|


शुभ मुहूर्त
ज्योतिषियों के मुताबिक, 1 नवंबर 2025 को देवउठनी एकादशी पर शाम 7 बजकर पूजा का शुभ मुहूर्त बन रहा है। इसके अलावा इस समय सभी देवी-देवता शयन मुद्रा से जगेंगे। इस दिन शतभिषा नक्षत्र भी बना हुआ है, जो शाम 6 बजकर 20 मिनट तक रहेगा। इस दौरान ध्रुव योग भी बना रहेगा।


पूजन विधि
देवउठनी एकादशी के दिन पूजा से पहले घर में गंगाजल का छिड़काव करें।फिर पीले रंग के वस्त्र धारण करें और अब पूजन के लिए भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाएं।यह आकृति गेरु से बनाएं और उसके पास मौसमी फल, मिठाई, और बेर-सिंघाड़े रखें।इस दौरान दान से जुड़ी सामग्री को भी प्रभु के पास रखें।फिर आप कुछ गन्नों को प्रभु की आकृति के पास रखें और छन्नी या डलिया से उसे ढक दें।आकृति के पास दीपक जलाएं और भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी जी की पूजा करें।अब आप मुहूर्त के मुताबिक शंख या घंटी बजाकर 'उठो देवा, बैठा देवा' गीतर से सभी देवी-देवताओं को जगाएं।फिर सभी भगवानों को पंचामृत का भोग लगाएं और अगले दिन व्रत का पारण करते हुए क्षमतानुसार दान करें।

देवउठनी एकादशी गीत


उठो देव बैठो देव
हाथ-पाँव फटकारो देव
उँगलियाँ चटकाओ देव
सिंघाड़े का भोग लगाओ देव
गन्ने का भोग लगाओ देव
सब चीजों का भोग लगाओ देव ॥ 
उठो देव बैठो देव
उठो देव, बैठो देव
देव उठेंगे कातक मोस
नयी टोकरी, नयी कपास
ज़ारे मूसे गोवल जा  
गोवल जाके, दाब कटा  
दाब कटाके, बोण बटा
बोण बटाके, खाट बुना
खाट बुनाके, दोवन दे
दोवन देके दरी बिछा
दरी बिछाके लोट लगा
लोट लगाके मोटों हो, झोटो हो
गोरी गाय, कपला गाय
जाको दूध, महापन होए,
सहापन होएI
जितनी अम्बर, तारिइयो
इतनी या घर गावनियो
जितने जंगल सीख सलाई
इतनी या घर बहुअन आई
जितने जंगल हीसा रोड़े
जितने जंगल झाऊ झुंड
इतने याघर जन्मो पूत
ओले क़ोले, धरे चपेटा
ओले क़ोले, धरे अनार
ओले क़ोले, धरे मंजीरा
उठो देव बैठो देव

Dev Uthani Ekadashi 2025: देवउठनी एकादशी पर अवश्य करें ये सरल उपाय, घर में होगी बरकत और करेंगे तरक्की

 


Dev Uthani Ekadashi 2025: देवउठनी एकादशी पर अवश्य करें ये सरल उपाय, घर में होगी बरकत और करेंगे तरक्की







सार
Dev Uthani Ekadashi 2025: हिंदू धर्म में 24 एकादशियों में देवउठनी को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु 4 माह की योग निद्रा से जागते हैं और सृष्टि की कमान संभालते है। इसी के साथ चातुर्मास का समापन भी होता है।


Dev Uthani Ekadashi 2025: हिंदू धर्म में 24 एकादशियों में देवउठनी को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु 4 माह की योग निद्रा से जागते हैं और सृष्टि की कमान संभालते है। इसी के साथ चातुर्मास का समापन भी होता है। वहीं इस दिन से शुभ मंगल कार्य भी प्रारंभ होते हैं। धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, देवउठनी एकादशी पर घरों में तुलसी विवाह भी किया जाता है, जो सुख-सौभाग्य का प्रतीक है। इस दिन विष्णु जी की पूजा-अर्चना व पीली चीजों का दान करने से प्रभु की कृपा मिलती हैं। यह दिन महिलाओं के लिए और भी कल्याणकारी माना जाता है। इस तिथि पर कुछ खास उपाय करने से रिश्तों में प्रेम और विश्वास बढ़ता है। यही नहीं देवी लक्ष्मी का वास भी घर में होता है। ऐसे में आइए इन उपायों को जानते हैं।


देवउठनी एकादशी 2025
कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 1 नवंबर को सुबह 9 बजकर 11 मिनट पर प्रारंभ होगी।
तिथि का समापन अगले दिन यानी 2 नवंबर को सुबह 7 बजकर 31 मिनट पर है।
तिथि के मुताबिक 1 नवंबर 2025 को देवउठनी एकादशी मनाई जाएगी।


धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक देवउठनी एकादशी पर पीले रंग के वस्त्र पहनकर शालिग्राम जी तुलसी जी की पूजा करें। इस दौरान पीले आसन पर विराजमान होकर तुलसी जी की आरती करें। यह बेहद शुभ होता है। इससे रिश्तों में प्रेम व विश्वास बढ़ता है।
इस दिन आप पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाएं। इसके बाद सात बार पेड़ की परिक्रमा करें। मान्यता है कि इससे कर्ज व दोष जैसी समस्याएं समाप्त होती हैं।


देवउठनी एकादशी की शाम घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाएं। इस दौरान घर में विष्णु-लक्ष्मी की उपासना भी करें और 'प्रणत क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम:॥' मंत्र का स्मरण करेँ। इससे जीवन में सुख-समृद्धि वास करती हैं। साथ ही बरकत होती है।



इस दिन भगवान विष्णु को पीली चीजों का भोग लगाएं। इस दौरान आप पंजीरी का भोग अवश्य अर्पित करें। इसमें तुलसी के पत्ते जरूर शामिल करें। इससे वह प्रसन्न होते हैं। साथ ही लंबे समय से अटके काम पूरे होते हैं।
देवउठनी एकादशी के दिन घर में तुलसी विवाह का आयोजन करें। यह बेहद कल्याणकारी होता है। इससे कन्यादान के समान फल प्राप्त होता है। यही नहीं घर में देवी का वास भी बनी रहता है।


Tulsi Vivah 2025:हल्दी का ये चमत्कारी उपाय बनाएगा विवाह के शुभ योग, जल्द मिलेगा मनचाहा जीवनसाथी

 


Tulsi Vivah 2025:हल्दी का ये चमत्कारी उपाय बनाएगा विवाह के शुभ योग, जल्द मिलेगा मनचाहा जीवनसाथी



Tulsi Vivah 2025:हल्दी का ये चमत्कारी उपाय बनाएगा विवाह के शुभ योग, जल्द मिलेगा मनचाहा जीवनसाथी


सार

Tulsi Vivah Par Haldi Ke Upay: तुलसी विवाह हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ माना गया है, जिसमें माता तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के शालीग्राम रूप से कराया जाता है। इस दिन पूजा करने से वैवाहिक जीवन में प्रेम, सौभाग्य और समृद्धि आती है तथा विवाह संबंधी बाधाएं दूर होती हैं।


Tulsi Vivah Remedies: तुलसी विवाह हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और शुभ त्योहार माना जाता है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है और इस वर्ष यह विशेष अवसर 2 नवंबर 2025 को पड़ रहा है। तुलसी विवाह का आयोजन देव उठनी एकादशी के अगले दिन किया जाता है, इसलिए इसे ‘देव उठान द्वादशी’ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माता तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के शालीग्राम स्वरूप से विधिपूर्वक संपन्न कराया जाता है।


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, तुलसी विवाह घर-परिवार में सुख, समृद्धि और सौभाग्य को बढ़ाने वाला है। इसे करने से वैवाहिक जीवन में आ रही परेशानियाँ और विवाह में होने वाली देरी जैसी समस्याएँ दूर होती हैं। साथ ही, यह पर्व पति-पत्नी के बीच प्रेम और आपसी समझ को मजबूत करता है। तुलसी विवाह का महत्व केवल पारिवारिक लाभ तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसे करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और पूरे परिवार में खुशियों और सौहार्द का वातावरण बनता है। यह त्योहार आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसे करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में संतुलन, सफलता और आंतरिक शांति का अनुभव होता है।


तुलसी विवाह कब है

हर साल तुलसी विवाह कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह तिथि 2 नवंबर 2025 से शुरू होगी। सुबह 7:31 बजे से द्वादशी तिथि प्रारंभ होगी और यह अगले दिन, यानी 3 नवंबर को समाप्त होगी। इस दिन का शुभ मुहूर्त सुबह 5:07 बजे तक माना गया है। इसलिए तुलसी विवाह मुख्य रूप से 2 नवंबर 2025 को ही संपन्न किया जाएगा।


तुलसी विवाह का धार्मिक महत्व

तुलसी विवाह का धार्मिक महत्व बहुत गहरा और पवित्र माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन तुलसी विवाह करने से व्यक्ति को कन्यादान करने के समान पुण्य और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। इसे करने से जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और वैवाहिक सौहार्द में वृद्धि होती है। माना जाता है कि तुलसी विवाह करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा मिलती है, जिससे व्यक्ति के जीवन में आने वाली परेशानियाँ और बाधाएँ दूर होती हैं। इसके साथ ही घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और पूरे परिवार में खुशियों और आनंद का वातावरण बनता है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसे करने से जीवन में संतुलन, सुख-शांति और आध्यात्मिक शक्ति का भी अनुभव होता है।


विवाह में देरी दूर करने के लिए हल्दी का उपाय

स्नान से पहले तुलसी विवाह के दिन स्नान के पानी में एक चुटकी हल्दी डालें।
यह उपाय शरीर और मन की शुद्धि के साथ गुरु ग्रह (बृहस्पति) की शक्ति बढ़ाने के लिए शुभ माना जाता है।
स्नान के बाद साफ और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
पूजा में श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ माता तुलसी और भगवान शालीग्राम की पूजा करें।
तुलसी और शालीग्राम को हल्दी या हल्दी मिले दूध का लेप अर्पित करें।
इस उपाय से कुंडली में बृहस्पति मजबूत होते हैं और विवाह में आ रही रुकावटें दूर होकर शुभ योग बनते हैं।






Tulsi Vivah 2025: तुलसी विवाह में कन्यादान किसे करना चाहिए? जानें पूजा विधि और शुभ समय


 

Tulsi Vivah 2025: तुलसी विवाह में कन्यादान किसे करना चाहिए? जानें पूजा विधि और शुभ समय





सार

Tulsi Kanyadaan: तुलसी विवाह भगवान विष्णु और माता तुलसी के दिव्य मिलन का प्रतीक है, जो भक्ति, प्रेम और समर्पण का उत्सव माना जाता है। यह पर्व शुभता, समृद्धि और मंगल कार्यों के पुनः आरंभ का प्रतीक होता है।


विस्तार

Significance of Tulsi Vivah: हिंदू धर्म में तुलसी विवाह एक अत्यंत पवित्र और भावनात्मक पर्व माना जाता है। यह दिन भक्ति, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। मान्यता है कि माता तुलसी देवी लक्ष्मी का अवतार हैं और भगवान विष्णु उनके शालिग्राम स्वरूप हैं। देवउठनी एकादशी के बाद जब भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं, तब तुलसी माता और भगवान विष्णु का यह दिव्य विवाह संपन्न होता है।


यह शुभ अवसर सृष्टि में पुनः मंगलता, समृद्धि और सौभाग्य के आगमन का प्रतीक माना जाता है। तुलसी विवाह के साथ ही विवाह, गृह प्रवेश और अन्य शुभ कार्यों का शुभ मुहूर्त पुनः आरंभ हो जाता है। इस दिन श्रद्धालु बड़ी श्रद्धा और उल्लास के साथ तुलसी और शालिग्राम के विवाह की रस्में निभाते हैं, जिससे घर-परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।


तुलसी विवाह में कन्यादान कौन करता है? 


तुलसी विवाह में कन्यादान की रस्म सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन तुलसी माता को एक कन्या के रूप में पूजकर उनका विवाह भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप से कराया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति तुलसी विवाह का आयोजन करता है, उसे तुलसी माता का पिता माना जाता है और वह कन्यादान का महान पुण्य प्राप्त करता है। इसी कारण तुलसी विवाह को “पुत्री तुलसी का विवाह” भी कहा जाता है। कन्यादान की यह परंपरा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके पीछे गहरा भावनात्मक और आध्यात्मिक संदेश भी निहित है। माना जाता है कि इस दिन तुलसी माता का कन्यादान करने से मनुष्य को अनेक जन्मों का पुण्य प्राप्त होता है और उसके जीवन में सुख, शांति तथा समृद्धि का वास होता है। विशेष रूप से जिन दंपतियों को संतान सुख की प्राप्ति की इच्छा होती है, उनके लिए यह अनुष्ठान अत्यंत शुभ माना गया है। तुलसी विवाह में कन्यादान करने से व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं और उसके जीवन में शुभता, सौभाग्य और ईश्वर का आशीर्वाद बढ़ता है।


तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त

तुलसी विवाह का पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है। यह पवित्र दिन माता तुलसी और भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप के दिव्य मिलन का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस दिन किया गया विवाह या पूजा अनंत सौभाग्य, समृद्धि और शुभ फल प्रदान करती है। इस वर्ष तुलसी विवाह रविवार, 2 नवंबर को मनाया जाएगा। इस दिन का प्रमुख शुभ मुहूर्त दोपहर 1:27 बजे से 2:50 बजे तक और सायंकाल 7:13 बजे से 8:50 बजे तक रहेगा। इन पवित्र समयों में तुलसी-शालिग्राम विवाह या पूजा करना अत्यंत शुभ और फलदायक माना जाता है। भक्तजन इन मुहूर्तों में विशेष पूजा-अर्चना कर भगवान विष्णु और तुलसी माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, जिससे घर में सुख-समृद्धि और सौभाग्य का वास होता है।




Kartik Purnima 2025: 4 या 5 नवंबर कब है कार्तिक पूर्णिमा? जानें तिथि, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और धार्मिक महत्व



Kartik Purnima 2025: 4 या 5 नवंबर कब है कार्तिक पूर्णिमा? जानें तिथि, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और धार्मिक महत्व




सार

Kartik Purnima Shubh Muhurat: कार्तिक मास की पूर्णिमा अत्यंत शुभ मानी जाती है, जब भगवान विष्णु और चंद्र देवता की विशेष पूजा का विधान है। इस दिन स्नान, दान और दीपदान का विशेष महत्व है और इसे देव दीपावली के रूप में भी मनाया जाता है।



विस्तार

Kartik Purnima Kab Hai: हिंदू सनातन परंपरा में प्रत्येक मास की पूर्णिमा तिथि को अत्यंत शुभ और पूजनीय माना गया है। इस दिन भगवान श्री विष्णु और चंद्र देवता की विशेष आराधना करने का विधान है। पूर्णिमा का दिन वैसे तो हर महीने शुभ फल देने वाला होता है, लेकिन जब यह तिथि श्रीहरि विष्णु को समर्पित पवित्र कार्तिक मास में आती है, तब इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है।


कार्तिक पूर्णिमा को धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। इस दिन स्नान, दान और दीपदान का विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर किया गया पूजन और दान अक्षय फल प्रदान करता है तथा सभी पापों का नाश करता है। इसी दिन देवताओं की दीपावली, यानी देव दीपावली का उत्सव मनाया जाता है, जब समस्त देवता काशी में गंगा तट पर दीप जलाकर भगवान विष्णु और महादेव की आराधना करते हैं।


देव दीपावली कब मनाएं और चंद्रमा को अर्घ्य कब दें

कार्तिक पूर्णिमा का दिन न केवल धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है, बल्कि इसी दिन देव दीपावली का महापर्व भी मनाया जाता है। इस वर्ष, पंचांग के अनुसार, देव दीपावली का सबसे शुभ समय या प्रदोषकाल शाम 5:15 बजे से लेकर 7:50 बजे तक रहेगा। इस अवधि में लगभग ढाई घंटे तक विधिपूर्वक पूजा-अर्चना और दीपदान का आयोजन किया जा सकता है। माना जाता है कि इस समय देवता पृथ्वी पर आकर अपनी दिव्यता प्रकट करते हैं, इसलिए इस दौरान किए गए धार्मिक कर्म विशेष फलदायी माने जाते हैं। साथ ही, कार्तिक पूर्णिमा पर चंद्र देवता की पूजा और उन्हें अर्घ्य देने का भी विशेष महत्व है। इस वर्ष चंद्रोदय शाम 5:11 बजे होगा। इस समय चंद्रमा को अर्घ्य देने और उनके लिए विशेष पूजन करने से मानसिक शांति, सुख-समृद्धि और परिवार में सौहार्द्य की प्राप्ति होती है। चंद्र देव की यह पूजा व्रत और दान के साथ मिलकर पुण्य की मात्रा को और बढ़ा देती है।



कार्तिक पूर्णिमा पूजन विधि

सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य दें।
स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें।
मंदिर या पूजा स्थल की सफाई करें और चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएं।
भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की स्थापना करें।
उन्हें कुमकुम, हल्दी और अक्षत अर्पित करें।
दीपक जलाकर आरती करें।
आरती के दौरान मंत्रों का जाप करें और विष्णु चालीसा का पाठ करें।
भगवान और माता से सुख, शांति और समृद्धि की कामना करें।
पूजा के अंत में फल और मिठाई का भोग अर्पित करें।
प्रसाद सभी परिवार के सदस्यों और मित्रों में वितरित करें।

कार्तिक पूर्णिमा का धार्मिक महत्व

कार्तिक पूर्णिमा को हिंदू धर्म में देव दीपावली और त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने तीन असुरों—संपतासुर, रुपासुर और महामालासुर—का वध किया था, इसलिए इसे भगवान शिव के लिए भी अत्यंत शुभ माना गया है। इसके साथ ही, यह दिन भगवान विष्णु की पूजा के लिए भी विशेष महत्व रखता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवता पृथ्वी पर आते हैं और दिवाली मनाते हैं। इस दिन गंगा और अन्य पवित्र जल तीर्थों में स्नान, ध्यान और दान का अत्यधिक महत्व है। विशेषकर दान और दीपदान करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट होते हैं और उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। शाम के समय दीपदान का महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि इसे देवताओं के स्वागत और उनके प्रति भक्ति व्यक्त करने का श्रेष्ठ माध्यम माना गया है। इस प्रकार, कार्तिक पूर्णिमा न केवल धार्मिक क्रियाओं और पूजा का दिन है, बल्कि यह आध्यात्मिक शुद्धि, मानसिक शांति और सामाजिक दान-धर्म का संदेश भी देती है।



Pradosh Vrat 2025: सोम प्रदोष व्रत पर शिववास और रवि योग समेत बन रहे हैं कई अद्भुत संयोग, बरसेगी महादेव की कृपा

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