Kartik Purnima 2025: 4 या 5 नवंबर कब है कार्तिक पूर्णिमा? जानें तिथि, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और धार्मिक महत्व
सार
Kartik Purnima Shubh Muhurat: कार्तिक मास की पूर्णिमा अत्यंत शुभ मानी जाती है, जब भगवान विष्णु और चंद्र देवता की विशेष पूजा का विधान है। इस दिन स्नान, दान और दीपदान का विशेष महत्व है और इसे देव दीपावली के रूप में भी मनाया जाता है।
विस्तार
Kartik Purnima Kab Hai: हिंदू सनातन परंपरा में प्रत्येक मास की पूर्णिमा तिथि को अत्यंत शुभ और पूजनीय माना गया है। इस दिन भगवान श्री विष्णु और चंद्र देवता की विशेष आराधना करने का विधान है। पूर्णिमा का दिन वैसे तो हर महीने शुभ फल देने वाला होता है, लेकिन जब यह तिथि श्रीहरि विष्णु को समर्पित पवित्र कार्तिक मास में आती है, तब इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा को धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। इस दिन स्नान, दान और दीपदान का विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर किया गया पूजन और दान अक्षय फल प्रदान करता है तथा सभी पापों का नाश करता है। इसी दिन देवताओं की दीपावली, यानी देव दीपावली का उत्सव मनाया जाता है, जब समस्त देवता काशी में गंगा तट पर दीप जलाकर भगवान विष्णु और महादेव की आराधना करते हैं।
देव दीपावली कब मनाएं और चंद्रमा को अर्घ्य कब दें
कार्तिक पूर्णिमा का दिन न केवल धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है, बल्कि इसी दिन देव दीपावली का महापर्व भी मनाया जाता है। इस वर्ष, पंचांग के अनुसार, देव दीपावली का सबसे शुभ समय या प्रदोषकाल शाम 5:15 बजे से लेकर 7:50 बजे तक रहेगा। इस अवधि में लगभग ढाई घंटे तक विधिपूर्वक पूजा-अर्चना और दीपदान का आयोजन किया जा सकता है। माना जाता है कि इस समय देवता पृथ्वी पर आकर अपनी दिव्यता प्रकट करते हैं, इसलिए इस दौरान किए गए धार्मिक कर्म विशेष फलदायी माने जाते हैं। साथ ही, कार्तिक पूर्णिमा पर चंद्र देवता की पूजा और उन्हें अर्घ्य देने का भी विशेष महत्व है। इस वर्ष चंद्रोदय शाम 5:11 बजे होगा। इस समय चंद्रमा को अर्घ्य देने और उनके लिए विशेष पूजन करने से मानसिक शांति, सुख-समृद्धि और परिवार में सौहार्द्य की प्राप्ति होती है। चंद्र देव की यह पूजा व्रत और दान के साथ मिलकर पुण्य की मात्रा को और बढ़ा देती है।
कार्तिक पूर्णिमा पूजन विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य दें।
स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें।
मंदिर या पूजा स्थल की सफाई करें और चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएं।
भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की स्थापना करें।
उन्हें कुमकुम, हल्दी और अक्षत अर्पित करें।
दीपक जलाकर आरती करें।
आरती के दौरान मंत्रों का जाप करें और विष्णु चालीसा का पाठ करें।
भगवान और माता से सुख, शांति और समृद्धि की कामना करें।
पूजा के अंत में फल और मिठाई का भोग अर्पित करें।
प्रसाद सभी परिवार के सदस्यों और मित्रों में वितरित करें।
कार्तिक पूर्णिमा का धार्मिक महत्व
कार्तिक पूर्णिमा को हिंदू धर्म में देव दीपावली और त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने तीन असुरों—संपतासुर, रुपासुर और महामालासुर—का वध किया था, इसलिए इसे भगवान शिव के लिए भी अत्यंत शुभ माना गया है। इसके साथ ही, यह दिन भगवान विष्णु की पूजा के लिए भी विशेष महत्व रखता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवता पृथ्वी पर आते हैं और दिवाली मनाते हैं। इस दिन गंगा और अन्य पवित्र जल तीर्थों में स्नान, ध्यान और दान का अत्यधिक महत्व है। विशेषकर दान और दीपदान करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट होते हैं और उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। शाम के समय दीपदान का महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि इसे देवताओं के स्वागत और उनके प्रति भक्ति व्यक्त करने का श्रेष्ठ माध्यम माना गया है। इस प्रकार, कार्तिक पूर्णिमा न केवल धार्मिक क्रियाओं और पूजा का दिन है, बल्कि यह आध्यात्मिक शुद्धि, मानसिक शांति और सामाजिक दान-धर्म का संदेश भी देती है।

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